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आम ,ख़ास और नेतृत्व : शिक्षक,शिक्षा और समय

shashwat bol
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आम व्यक्ति पेंड़ से गिर चुका फल जैसा ही है .जो रस से भरा भी हो तो सड़क के किनारे पड़ा मुल्य्हीन जैसा तो माना ही जाता है .वैसे ही जैसे कूड़े के ढेर पर गहनो की पोटली भी कूड़े की दुनिया में शुमार रहती है .बचपन से पचपन और पचपन से बचपन की लहरों में कितने ही दृष्टांत सुखद – दुखद अहसासों के ओज और बोझ के भूलते – भागते पलों में डूबते -उतरते रहते है .आम के वृक्ष पर पचासो पत्थर मार के मिले एक आम को काट -पिट कर दसियों मित्रो में बाँट के खा लेने का आनंद ,बड़े -बड़े माल में पिज़्ज़ा -बर्गर में शायद नहीं मिल सकता .तर्क है ,मगर तय है वो आनंद हरगिज नहीं मिलेगा .गुल्ली -डंडे का खेल जिसमे जीतने वाला उतना ही दौड़ता -हांफता है जितना हारने वाला सजा दूरी तय करने में श्वाश लिए बगैर .यह सब आम का निराला स्वरूप है .इस आम से अर्श पे और फर्श पे लोग पाये जाते है .आम के कंधे पर चढ़ के कितने प्रधान महान हुए .जब कार्यपालिका ,न्यायपालिका अथवा विधायका से महत्ता के तरफ बढ़ते लोग ख़ासम ख़ास रूप में प्रधान बनते है तो उनकी विशेष जिम्मेदारी हो जाती है .कुल मिला के ख़ास के महत्व की बुनियाद में आम का पसीना ही उर्वरक बनता है .आम की मिठास ही ख़ास को विशेष दर्जे पर खड़ा करती है .इसी आम ने वर्तमान नेतृत्व को ख़ास महत्व ,कामयाबी और रहनुमाई का दायित्व सौंपा है .जिसे ५ वर्ष के शासन -काल मात्र से नहीं सदी की उच्च आकांक्षा प्रेरित कहा जा सकता है . अब आकांक्षा स्वयं अदभुद भारतीय गुरु -शिष्य परम्परा से जुड़कर निर्माण को बल दे तो आम स्वागत क्यों नहीं करेगा ! हाँ यह सत्य है की शिक्षक कभी रिटायर नहीं होता . वहीं शिक्षा और समय सार्वभौम और सर्वोपरी हैं तो आम हमेशा से दरकिनार हाशिए पर रिटायर जैसा रहता चला आ रहा है ,जिनकी उम्मीद राष्ट्र को जीवन दायिनी है . —————- अमित शाश्वत

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