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हिंदी भाषा को राष्ट्रभाषा के रूप में अंगीकार कर संविधान निर्माता ने जिस सूझ -बुझ और दूरदृष्टि का परिचय दिया है ,उसे ज्ञानचक्षु से भविष्य दर्शन की समर्थता माना जा सकता है .बेहतरीन सहजता ,सरलता और तन्मयता युक्त विवेक का प्रयोग दिखता है .यह नीतिगत निर्णय निश्चित रूप से व्यापक बौद्धिकता को परिलक्षित करता है .वैसे महान विभूतियों को हिंदी -दिवस पर याद करना आत्मगौरव तथा राष्ट्रीयता को ठोस बनाता है . उन महापुरुषों को नमन करना वास्तव में हिंदी को नींव से समझने और विकसित करने की भूमि प्रदान करती है . शासन व्यवस्था में मान्यता के बाद भी हिंदी आज तारीख में अपनी जड़ जमाने में पीछे पड़ रही है .इसके पीछे हिंदी के तथाकथित कर्ताधर्ता ज्यादा दोषी ठहरते है .हिंदी के नाम पर मौज़मस्ती करने वालों की भरमार हो रही है .सरकारी कोष का उपयोग हिंदी के विकास के बजाय निरर्थक बना दिया गया है . विडंबना देखिए की अंग्रेजी के नक़ाब से ढके समर्थक सामंतवादी छदमता धारण किये नींव में पैठ किये है .बुनियाद में ही राष्ट्रभाषा को विकलांग बनाने की साजिश जारी है. फिरभी सुखद लगता है जब हिंदी कछुए की भाँती शनै -शनै जागरूक और गतिशील है .कदम बढ़ाने की प्रक्रिया जारी है . वर्तमान भारतीय शासन व्यवस्था से हिंदी को सफल नेतृत्व मिलने की उम्मीद जाग रही है . ———————————————————————–अमित शाश्वत
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