- 86 Posts
- 77 Comments
दुनिया में छोटी -मोटी नौकरी की ख्वाहिश रखना और इस उदेश्य की पूर्ति हेतु उच्च पदधारी या ताकतवर का कारिंदा बनना /बनाना एक व्यवहार जैसा रहा है .कार्यरत भी ऐसी योग्यता! धारण करते हैं .गाँव -चौपाल से लेकर शहर -चौक तक ऐसे कइ आधुनिक विकृत सामंत मिल जाएंगे जो प्रकृति के चिड़ियाघर में उस्ताद रूप में जमूरे को नचाते हैं .मतलब काम निकलने की उम्मीद में अनेक इंसान स्वार्थपूर्ति का साधन बन आज़ाद हिन्दुस्तान में अंग्रेजी शासन झेलने को मज़बूर होते है .इसे विशुद्ध रूप में नौकरी की तमन्ना में नौकर का नवीन संस्करण समझा जा सकता है .वैसे दुनियादारी में “एक हाथ दो दूसरे हाथ लो “वाली परम्परा मान कर स्वीकृति मिली है . ताज़ा -ताज़ी खबर में बिहार सरकार के स्वास्थ्य विभाग में १००० कर्मियों को हटाया गया था जिस फैसले को पटना उच्च न्यायालय ने भी मुहर लगा दी है .हालांकि एकल पीठ ने कर्मियों का पक्ष पूर्व में सही माना था . इन फैसलों पर गंभीरता जयादा महत्वपूर्ण है .सरकार के हिस्से में कलमबाज़ों की टोली लगी रहती है .जिनके कलम की लाल स्याही जिंदगी को शनि की कालिमा भी देने की भागी रहती है .’लाल कलम लगना ‘मानो कापी में नंबर से लेकर बुढ़ापे का सहारा -पेंशन तक कालिमा छाने की बौद्धिक तकनीक की कलियुगीन प्रवृति और स्याह पक्ष ! उक्त कर्मियों की नियति अब अन्धकार की गवाह जैसी लगती है . दीगर है की इन कर्मियों ने ‘जिंदगी की चाह में उठाए होंगे बोझ बड़े’ . ढेरों खिदमत किये होंगे .आधुनिक सामन्तवाद में साग -सब्जी ,झाड़ू -बर्तन ,गाये -गोबर ,सेवा -टहल करते साहब -बीवी सहित ढेरों को मालिक ,हुज़ूर ,बॉस मान करतब किये होंगे .इनके लिए ढाल -तीर भी बने होंगे तब मिली या चल रही नौकरी से पालन -पोषण संभव हुआ होगा .मगर सरकार तथा न्याय पक्ष ने उन बाजीगरों पर सवाल नहीं उठाए जिनकी कलमकारी ने कर्मियों को कुपोषण के मार्ग तक दिखा दिया और कपड़े पर चीटीं माफिक झाड़ते रहे ही . सारे रवैए से लगता है की प्रकृति के चिड़ियाँघर में ऐसे लोग चारा ही हैं जिन्से गीदड़ पेट भरता है जबकि खूटें के चारे की गरदन मरोड़ शेर विजय दंभ भरता स्वयं को राजा और शिकारी मानता तो लगता ही है .
Read Comments