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महात्मा जी को नकारना नही

shashwat bol
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महात्मा गांधी का सम्पूर्ण जीवन -दर्शन सहजता व् सरलता की यथार्थवादी भूमि पर सदैव खड़ा मिलता है .जिसमे निरंतर निखार बढते जाना बापू की पकड़ मज़बूत होना जाहिर करता ही है .महात्मा जी का व्यवाहरिक विज्ञान लोकतंत्र की समर्थ भूमिका साबित तो है ही .आधुनिक परिप्रेक्ष में मोहनदास कर्मचन्द गांधी विश्व पटल पर संघर्ष की क्षमता से लैस सबसे ताकतवर विचारधारा के केंद्र है .जिसकी योग्यता विश्व समझ गया है .परन्तु शीघ्रता से परिवर्तन की बेहोश इक्क्षा ने सम्भवतः गांधी की गहराई को समझने में बोझ लेने की क्षमता त्यागने की भूल जरूर कर देतें है .नतीज़तन परिवर्तन की जगह परावर्तन की सीमितता जगह ले लेती है . गुरुदेव रविन्द्र नाथ ठाकुर ने ” एक्ला चलो ” के सैद्धांतिक उद्घोष को जबरदस्त गरिमा दिया जिसे महात्मा गांधी ने व्यवाहरिक जीवन व् संग्राम में उतार कर जीवन को मार्गदर्शक अंजाम देने की महती वैश्विक कार्य करने में सफलता पाई .जिसे विश्व अंगीकार करता है .अफ्रीकन गांधी नेल्सन मंडेला ने बापू के प्रति जो संज्ञान दिखाया है वह मानव मात्र के लिए गांधी जी का सार्वभौम जीवन -दर्शन व्यक्त करता है .अगर घातक हथियार हाथों में दे कर स्वकेंद्रित सत्ता की भूमि का कतिपय मार्ग कथित रूप में दिखाया जा रहा है तो महात्मा जी ने कई दशको पूर्व जीवन -दर्शन के परिपक्वता से सार्वभौम मार्ग प्रशस्त किया जो देश -काल से आगे बतलाती है .गांधी जी पर गौर न करना या गांधीविचार को अपमानित करना मानवमात्र की जड़ता का पोषण है .आज विकसित व् विकासशील देशों ने ही नहीं दुनिया के तमाम जागरूक देशों ने महात्मा गांधी के युगबोध की अवधारणा को समझ लिया है .जो सर्वकालिक गतिसम्पन्नता से सुसज़्ज़ित लक्ष्यबेध शक्तियुक्त है .विभिन्न सफलताए एव आशाए तय करती हैं की बापू पूरी समग्रता से कार्य किये हैं .जो व्यापकता के साथ प्रत्येक क्षण पंच तत्वों के सदृश्य सर्वत्र चलायमान है .महात्मा गांधी जी को नकारने की कोई भी भूल या साज़िश स्वयं को युगीन जकड़न में निरर्थक त्रिशंकु न बना दे .

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