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जब छूट गया हो किनारा घिर आए ह्रदय में अंधियारा रौंदाए विचारों में जीवटता भर के मन माटी सदृश्य बना लो , तम तिनकों सा बिखर जाएगा अंतस के दीप जलेंगे .(१) जीवन के अनछुए पलों को खोलो होंठो से ना पलकों से बोलों ना जग से ना मैं से ,जुड़ो तो अंतरतम के सुप्त ज्योत से जुड़ो , तम तिनकों सा ——(२) युग चेतना में हो सम्मति तुम्हारी फिर ,टूटेगी ही वेदना की कड़ी मिथ्या जगत के घाव न गिन निज को त्याग ,परम को चिन्ह, तम तिनकों सा ——(३) वक्त चलेगा ही अपनी चाल रुकने ना दो अपने सवाल करवट -करवट अंधियारा सरकेगा रथी -सारथी स्वयं ही बन डाल , तम तिनकों सा बिखर जाएगा अंतस के दीप जलेंगे (४) ————————–अमित शाश्वत
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