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आजकल चार चकवा गाडी खरीदने और सम्पन्नता प्रदर्शित करना आम हो चला है .वैसे सुविधा के लिहाज से भी ऐसा होता लगता है .अगर सारी ऊर्जा खपा कर ओहदा पा गए तो गाडी और ड्राइवर साथ . एक समय था तब गाडी व् टेलीफोन उदाहरण के साथ मुहल्लों में सबसे बड़े की भूमिका बनती थी .ट्रंककॉल आना सम्मान था तो ह्रदयघात जैसी जद्दोजहद और अफरातफरी का सबब भी .अब ये खास यंत्र आम हो चूका है .शायद वर्तमान के बच्चे मोबाइल सेट के पहले की कल्पना भी नहीं कर सकेंगे . वैसे विज्ञानं ने सहजता से सभी को सुविधा सम्पन्न जरूर किया है . अर्थशाश्त्र में बताया गया है की आवश्यकताऍ अनंत है .अगर गाड़ी ले ली जाए तो उसका भरण -पोषण (ईंधन ) आवश्यकक होगा .पद -प्रतिष्ठा ,शान शौकत और सुविधा के लिए ड्राइवर की जरुरत हो जाएगी . सरकारी मोटर गाड़ियों के चालक हों या निजी गाड़ी के अधिकांश अपने स्वामी के चमक ,धमक ,हनक से मतवाले हुए जाते है .बात सनक तक भी होती रहती ही है . नतीजतन मालिक की दशा वैसी भी हो जाती है जिसमेबंदर मालिक की नाक से मक्खी उड़ाने के लिए तलवार के प्रहार से नाक ही काट डाली . बड़े – बड़े लोगों के साथ बढ़ती दुर्घटनाएं चिंतन को अंजाम देने का मार्ग प्रशस्त करने हेतु बाध्य करे वर्ना झोपडी तक में और ,सड़क किनारे बूढ़े ,महिलाएं ,बच्चे और गरीब शराब के साथ हनक और सनक के शिकार तो होते ही रहते है . ———–अमित शाश्वत
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