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भ्र्ष्टाचार को मुद्दा बना कर राजनैतिक दखल हासिल कर लेने वाली पार्टी ‘ आप ‘ ने थोड़े वक्त में जबरदस्त कामयाबी पा ली .प्रारंभिक चुनावी टक्कर में आप अध्यक्ष अरविन्द केजरीवाल देश के राजनैतिक केंद्र दिल्ली क्षेत्र के मुख्यमंत्री नियुक्त हो गए .हालाँकि बहुत से निणर्य आनन – फानन में करके भी वे पद त्याग के आड़ में पलायन कर गए . भारी छीछा – लेदर और कहकहों के दरम्यान केजरीवाल आधुनिक राजनीति में अधूरी छाप जैसे हो गए थे . आगे हाल के चुनाव में रिकार्ड जीत से वापसी कर आप सुप्रीमो केजरीवाल एव उनके दल ने भी उम्मीद से कही अधिक सफलता पा ली है .अबकी बार भारी जीत ने दल पर दबाव अवश्य बना लिया . जनता की जबरदस्त आकांक्षा के बोझ से उत्पन्न अत्यधिक जिम्मीदारी का तनाव और अल्प अवधि ,अल्प श्रम के वावजूद ऐतिहासिक जीत के प्रतिफल रूपी महत्वकांक्षा के दुष्परिणाम से आप की राजनितिक शैली को अपने ही दल में विभिन्न ‘मैं ‘और “मैं ” ने ग्रसित किया है .यह आश्चर्य तो हरगिज नहीं मना जा सकता क्योंकि आप की संरचना सामायिक एव प्रासंगिक तौर पर ‘लोहा को लोहा ..’स्वरूप में ही किया गया . जिसमे कई ओर व् कई तरह के बुद्धिजीवियों एव सामान्य का मेल बना . भ्रस्टाचार के तथ्यों को आधुनिक ढंग से हथियार साबित करके आप ने जनता को भरोसा जताया .हाँ,आप सदस्य मूल रूप से यत्र तत्र भ्रष्ट तंत्र से दो चार हुए जागरूक लोग माने जाते हैं .जिनके पास राजनैतिक ताकतों को बेनकाब करने का स्टिंंग जैसा भी नायब तरीका रहा है .सर्व विदित है की बुद्धिजीवियों के परस्पर सामंजस्य की तुलना एक जगह इक्क्ठे मेढ़कों से की जाती है . सीधे ढंग में आप के भीतर हालत वैसा ही प्रतीत होता है . हद तो ये की राजनीति जैसी आधुनिक तिकड़मबाजी को विषबुझी शैली में भ्रष्टों पर ‘आप ‘ ने ही सफलता पूर्वक टेस्टेड किया , जिसका इस्तेमाल अपनों में भी करते रहे है . अभी लगातार सामने आने वाले अंदरुनी पूर्व प्रमाण जाहिर करते हैं की आप के अंदर अविश्वास किस कदर व्याप्त रहा है . वास्तव में आप के संघर्ष की भाव भूमि स्वयं के लिए चिता भूमि भी बनती लग रही है . इसतरह जनता के विश्वास और रिकार्ड समर्थन का शीघ्र ही चिंतनीय एव निंदनीय अवस्था की ओर बढ़ना लोकतंत्र से खिलवाड़ है साथ ही यह आप के भविष्य खातिर गंभीर प्रश्न खड़े करता है .——- —-@ अमित शाश्वत
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