Menu
blogid : 19050 postid : 868286

उच्च शिक्षा हेतु यूजीसी का भविष्य

shashwat bol
shashwat bol
  • 86 Posts
  • 77 Comments

यूजीसी के पुनर्गठन की बात अब चर्चा में है .१९४८ में गठित इस संस्था ने अपनी भूमिका को निर्वाह करने में कितनी सफलता प्राप्त की यह वर्तमान हेतु चिंतनीय पहलु है .१९५६ में वैधानिक रूप से मान्यता के बाद यूजीसी ने लगातार उच्च शिक्षा के सफलता के लिए प्रयास जरूर किये .अपनी भूमिका की पहचान शिक्षा क्षेत्र को जताई भी है .मगर जहां तक शिक्षा ,शिक्षण के बेहतर मानक का सवाल आता है यूजीसी के लगातार संलगनता के वावजूद भी भारत में असफलतापूर्ण उच्च शिक्षा और विश्वविद्यालयी संस्थान ज्यादा उपलब्ध है .गिनती भर संस्था भले कुछ सार्थक कार्य करने में लगी हैं वरना राष्ट्रीय स्तर पर अधिकाँश संस्थाए मूलतः कागजी प्रमाण पत्र उत्पादक हो के रह गई है .कई राज्यों में हालत और ही ज्यादा ख़राब है .बिहार सहित अन्य कुछ राज्य नेट जैसी राज्य स्तरीय योग्यता परीक्षा आयोजित तक नहीं कर पा र्रही .बिहार में अंतरास्ट्रीय स्वरूप की भाषा भोजपुरी में उच्च शिक्षा हेतु पद भी सृजित है पर ताजा नियुक्ति प्रक्रिया में अलग रखने हेतु फाइलों में उलझा के साजिशन कार्य कई स्तर पर हो रहे है . न्यायालय में विचाराधीन/लंबित मामले उच्च शिक्षा और शिक्षको के सुविधा वेतन ,पेंशन ,प्रोन्नति आदि में भारी जद्दोजहद व्यक्त करता ही है . वहीँ छात्रों को तमाम सहूलियत के नाम पर खानापूर्ति एव घपलेबाजी सहज है . इस तरह के उदाहरण यत्र – तत्र सरलता से आम है . और तो और आधुनिक गुणवत्ता और अनुसंधनातमक शिक्षा की व्यवस्था को चर्चा तक सिमित करने की परिपाटी बना कर कार्यान्वयन गोल हो रहा है .वैश्विक मानदंड से काफी नीचे का स्तर होना उच्च संस्थाओं को कटघरे में बाकायदा हाजिर करता है .विश्वविद्यालय अनुदान आयोग अंतर्गत उच्च शिक्षण संस्थानों में आधारभूत संरचना और आधुनिक तकनीकी सम्पन्नता भी नगण्य ही बनता है .लेकिन इन सब के परिणामतः खुले तौर पर भी यूजीसी की भूमिका गंभीर रूप से चिंतनीय तो है ही .————————-अमित शाश्वत

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh