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आप के सभा स्थल के समीप ही किसान गजेन्द्र सिंह ने आत्महत्या कर ली.खबरों की हकीकत के मद्देनजर आप पार्टी के बड़े नेतागण मंच पर आसीन ही नहीं थे बल्कि गजेन्द्र उनकी संज्ञान में दृस्टिगत भी था .जिस प्रकार की संवेदनशून्य कार्यवाही आप के नेताओ ने साफ़ तौर पर जारी रखी वह सवाल नहीं जनता के भारी समर्थनं को ही कटघरे में ला के बंदी जैसा बन जाना ही लगता है .चाहे हम सब कितनी भी बखिया उधेड़ दें परन्तु यह तय है की किसान गजेन्द्र अब वापस हरगिज नहीं लाया जा सकता . मामले की तस्वीरों और वक्तव्यों से दिखता है की राजनीति में किसान कठपुतली बनाया जा रहा है .क्योंकि आप पार्टी स्वयं दिल्ली की सरकार – कर्ताधर्ता ही है .अगर पुलिस प्रशासन इस घटना के लिए गुनहगार बताई जा रही हो तो ये कोई विदेश की सेवा संस्था तो नहीं है न .अपने मातहत प्रशासन पर छात्रसंघ की नेताओं के माफिक आरोप लगा देना भर से दाग छुपता तो हरगिज नहीं ही है उलटे स्पस्ट हो गया की पहले बार जैसे ही ” आप ” की सत्ता में विधायिका और कार्यपालिका में सामंजस्य तो नहीं ही है .किसान के हक़ की चादर ओढ लेने मात्र से इस वर्ग का भला नहीं हो सकता . amit shashwat
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