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मतलबी मानव के बीच गजेन्द्र रहा दीवाना झूल गया साख पर ,शैतानों को भी पड़ा शर्माना . हाय !तेरी बिसात क्या ठहरी भाई गजेन्द्र नर था निराश ,बन गया मानवीयता का केंद्र . ना शेर आया ,न बवंडर ,ना बमबारी ना सजा ,न ही खता ,ना साजिश, ना भारी दुनियादारी . फिरभी छोड़ संसार चल दिया तू तो यार ना लिया दुआ न सलाम ना कोई आभार . इन्तजार में टकटकी न लगाना ,हारी बाजी दे के सन्देश शहादत से ,सफर छोड़ा बाकी . मुल्य्हीन बने जीवन से बलिदानी हिंदुस्तान गवाह बने नाद ब्रह्म , लीन हुआ किसान . रेत पर टीके इंसान न चाहो आंधी से यारी आँखे खोलो ,देखो अपनी -अपनी अंधियारी . लहू किसान की पुकार करती हाहाकार भारतीय आत्मा की दर्द भरी चीत्कार . गजेन्द्र को गौण करो या मानो परवाना खुदा खैर की शहादत को नहीं बोला पागल कारनामा . ——— —————अमित शाश्वत
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