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प्रकृति ने हलचल की तो आदमी की सांसे फूलने लगी .आदमी ने अपनी कामयाबी को कंक्रीटों में जोड़ कर अट्टालिकाओं का नमूना अवश्य खड़ा कर दिया है .वाह्य दुनिया में दृष्टिगत अनेक निर्माण के बदौलत अपने आप को सुपर से ऊपर समझ भी ली है .मगर यह भूकम्प ऐसी बला निकली की वही आदमी अपनी सफलता और निर्माण से दूर भागता चला गया .यह भूकम्प प्रकृति की सामान्य क्रिया ठहरी जिसने कुछ पलो में आदमी को अपनी औकात जता ही नहीं दी बल्कि भयभीत भी कर दिया .लाखों इंसानो में किसी ने इन्ही क्षणों में दूसरे को औकात दिखने की बात बोलने की हिमाकत नहीं की होगी .तय है की इस वाक्याके समय किसी ने अन्य को कदापि नहीं कहा होगा की ‘ तेरी औकात क्या है ? ‘. ऐसा कहने वाले बिन पेंदी के उन महानुभाओं को सबसे ज्यादा डर पैदा हुआ होगा ,वजह सीधा है की ये मुद्दा उनके जेहन का लगातार टी आर पी बनाये रखता जो है .भूकम्प द्वारा प्रकृति ने कुल मिला के अपनी भौगोलिक प्रक्रिया की सहज क्रिया को संपन्न भर किया तो आदमी उसी के समक्ष बौना साबित हो गया .आपदा प्रबंधन की सच्चाई और चुनौती स्पस्ट भी है . यह सच है की मानव अपनी क्षमता से प्रकृति के साथ स्वयं को जोड़े रखने के स्थान पर उसे नष्ट करने की नादानी अपने लाभ हेतु धड़ल्ले से करता है .प्रकृति के संहार से बचने के लिए आवश्यकक अनुकूलता व् सामंजस्य की प्रवृति व्यापक तौर पर अपनानी पड़ेगी .इस आपदा से पीड़ित लोगों के प्रति हार्दिक संवेदना . ईश्वर उन्हें भरपूर शक्ति प्रदान करें . —————-अमित शाश्वत
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