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भारतीय न्याय व्यवस्था में सहज रूप से न्याय की आधुनिक अवधारणा के साथ लम्बी न्यायालिय प्रक्रिया को भी स्थान मिला हुआ है .आज भारतीय न्यायालयों में लाखों मामले कई – कई वर्षों से लंबित है .इसी जदोजहद का ताजा उदहारण सलमान खान का कोर्ट केस भी है .१३ सालों की पीड़ादायक और अपमानजनक प्रक्रिया में वक्त गुजार के भी न्याय के रूप में सलमान को सजा मिला ही .वैसे हिन्दुस्तान में कई मामले मिलते है जिसमे न्याय के ढीले – ढाले व् विलम्बित संभव प्रक्रिया के उपरान्त सालों साल पर न्याय मिल जाने के बाद भी न्याय पाने वाला पक्ष इन्साफ से लाभ नहीं उठा पाता अथवा न्याय – सुख से तो सर्वथा वंचित ही रहता है .कभी – कभी तो न्याय की आस में वह बूत की स्थिति तक में पहुंच चुका होता है और तो और कई बार भगवान को प्यारा भी हो जाता है . अर्थात अगर न्याय प्राप्त भी हुआ तो वस्तुस्थ्ति ‘ का बरखा जब कृषि सुखानी ‘ वाली रहती है . यही नहीं निर्दोष तक न्याय में देरी से अपराधी के माफिक भुगतता भी है . वास्तव में न्यायिक प्रक्रिया की जटिलता तथा कानूनी जाल में फंसा व्यक्ति त्रिशंकु बना होता है .जिसे न्याय की चाहत में अन्याय झेलने की मज़बूरी भी हो जाती है .अगर दोषी न्याय में विलम्व से राहत पाता लगता है तो अन्य वेवजह का अन्याय ही झेलता है . हाल ही में न्यायाधीशों के सम्मेलन में न्याय हेतु समय सीमा तय करने की चर्चा उठी है .माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने भी इस मुद्दे को आमजनों के हक़ में उचित माना और संवेदनापूर्ण समर्थन व्यक्त किया .वर्तमान की लंबित न्यायिक मामलों की भारी भरकम संख्या के साथ भविष्य में यह संख्या और अधिक बढ़ने की सम्भावना ही है . तब ऐसी परस्थिति में समय सिद्ध कर रहा है की न्यायालिय मामलों की समय सीमा तय की जाए . न्यायालिय फैसले हेतु अवधि निर्धारित होने से न्यायालय और सम्बधित पक्षों को निश्चित रूप से जवाबदेही उठानी तो पड़ेगी ही . ———————————अमित शाश्वत
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