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अपमान-उपहास के झेलें तीर:खुद्दार बतातें नीर -क्षीर

shashwat bol
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भारत के प्राचीन , मध्यकालीन और आधुनिक इतिहास के अध्ययन के बीच अकनेक ऐसे उदाहरण मिलते है जिसमे अपमान ,उपहास व् जलालत झेलने के फलस्वरूप मानवीय शख्सियत ने युगीन परिवर्तन कायम की . अपने ज्ञान ,बुद्धि तथा बल का परचम लहराया .आचार्य चाणक्य या कौटिल्य के अपमान ने नन्द वंश की चूलें हिला देने के लिए महान सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य को मार्ग प्रशस्त किया . सिकंदर महान के राह में रोड़ा बनने वाले राजा पोरस के हार में जीत के वाक्य ‘ एक राजा जो दूसरे राजा के साथ करता है ‘ में हिन्दुस्तान की खुद्दारी बयां होती है .सम्राट अशोक को कलिंग युद्ध के भारी हिंसा नीति के उपरान्त भगवन बुद्ध के अहिंसा तथा ‘बुद्धम शरणम् ,संघम शरणम् ,धम्मं शरणम् ‘ का मार्ग ही उचित मिला .यह महात्मा बुद्ध के धर्म -ज्ञान की नीर -क्षीर योग्यता एवं सफलता हैं . भारतीय इतिहास के दिल्ली सल्तनत और मुग़ल काल में अपमान ,उपहास एव बदले के भाव मिलते है वहीँ रजिया सुल्तान की दिलेरी ,अल्लाउद्दीन ख़िलजी की व्यवस्था और शाहजहाँ की कला परख ,अकबर की सद्भावना प्रयास से विपरीत परिस्थितियों में शासकों की विवेक क्षमता भी उद्घटित है .आधुनिक हिन्दुस्तान में पतन व् उत्थान की ढेरों चर्चाए मिलती है . तार्किक नजरिए से महात्मा गांधी के दक्षिण अफ्रीका प्रवास को देखें तो ट्रैन में अपमानित किये जाने की ऐतिहासिक घटना ने तो हिन्दुस्तान के भविष्य की शानदार नीर -क्षीर क्षमता प्रदर्शित किया . २०१४ के राष्ट्रिय आम चुनाव में प्रचार के क्रम में हद पार करके ” चाय वाला ” कहके अपमान ,उपहास और हतोत्साह हेतु जाल बनाया गया .मगर जनता की नीर -क्षीर योग्यता ने अजब -गजब बातों को दरकिनार कर हिन्दुस्तान को ऐतिहासिक एव प्रभावशाली नेतृत्व का सबक़ दिया . जो वैश्विक रूप से भारत को सम्मान का हक़दार बनाने में निरंतर संलग्न है .तो अब “सूट – बूट” के नाम उपहास की चेष्टा द्वारा बिखरी उम्मीदों की विकृति जाहिर होने लगी है . समयानुसार आज स्वीकार कर लेनी ही चाहिए की आम अवाम देखता -सुनता , समझता तथा मौके पर युग निर्माण के फैसले भी कर सकता है . —–अमित शाश्वत

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