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जी हाँ ,यह किसी विशेष के लिय नहीं कहा जा सकता .वास्तव में यह चिंतन प्रत्येक मनुष्य के लिए ही सार्थक व् सार्वभौम तातपर्य को इंगित करता ही है .जहाँ आदमी के सामथ्य तथा सम्भावना में भिन्नता होती है .परिणामस्वरूप उसका चिंतन या आत्मतत्व का स्तर अलग – अलग संभव भी होता है .इसलिय मानव -मानव के बीच तारतम्यता बने रहे इसके उद्देश्य से नाना प्रकार से उन्हें जोड़ने की अवधारणा में समाज ,परिवार के साथ धर्म जैसी व्यवस्था अपनाइ जा सकी .अध्ययन,मनन से स्पष्ट मिलता है की यह परम्परा अथवा नियम व्यवहारिकता के संग विवेक के तराजू पर आंक के लगातार अपनाइ गई .यही नहीं जब – जब वर्तमान की कसौटी ने परिवर्तन की आवश्य्कता जताई सहजता से इनमे बदलाव होते भी रहे .कालांतर में यह विभिन्न धर्मों में भी स्थापित हुईं . देशकाल ,परिस्थतियां या बाह्य संपर्क के अवसर जैसे अनेक निरंतर प्रभाव से इस व्यवस्था पर लगातार प्रहार भी चला . संघर्ष के विचारधारा प्रस्फुटन से प्रभुत्व-कामना को भी पनाह मिला .जिसने भिन्न – भिन्न आधार के सहारे अपने दल – बल के निर्माण व् सहयोग द्वारा छल -प्रपंच के शागिर्दगी में विभेद जनक मार्ग अपनाया . ऐसे ही सदियों क्रम चलता गया .निरंतर गिरावट होता ही रहा . आज हम मानव अपने चारों ओर जीवन के पत्तोन्मुख धारा को सरलता से देख – समझ सकते हैं . सामाजिक ,आर्थिक ,राजनैतिक तथा धार्मिक ही नहीं बल्कि पारिवारिक से लेकर व्यक्तिगत तौर पर भी अनेक प्रकार की मलिनता मानव जीवन में घर कर गई है .वर्तमान समय में अपनी इक्क्षा के वश में हुआ मानव अपना संयम त्याग चूका है .लोभ ने उसे ग्रास में ले लिया है .जिन अनैतिक विचारों यथा ईष्या -द्वेष ,लोभ -मोह ,हिंसा ,अत्याचार ,बलात्कार इत्यादि को व्यवस्था के सर्वोच्च स्वरूप से अलग रखा गया ,उनके ही द्वारा तथाकथित लाभ के क्षणिक सत्ता की प्राप्ति को उच्च मान्यता मिली है .इस अधोगति जीवन ने मानवीय संयम को छिन्न – भिन्न किया है . आपसी प्रतिद्वंदिता के नतीजे जहाँ सहयोग को तिलांजलि देते दिखतें है वहीँ सम्पूर्ण रुपरेखा मानव के मानव से सहानुभूति को हास्यास्पद श्रेणी का भाव जताने लगी है .मानवीयता के परम्परा को उपहासजनक अवस्था में नरकीयता प्राप्त है . वस्तुतः मानव संयमपूर्ण एव सहानुभूतिजन्य जीवन से कटता गया है .फलस्वरूप पीढ़ियों को नैतिकतापूर्ण जीवन से जद्दोजहद के स्थान पर सहज सुलभ भोगवादी अनैतिकता की ओर भटकना सरल प्रतीत हो रहा है .—————– अमित शाश्वत
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