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राजनीति की घासलेटी लालित्य नीति

shashwat bol
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एक वर्ष पूर्व हुए चुनाव के बाद हिंदुस्तान ने भारी उम्मीदों के साथ अपने कदम देश ही नहीं विदेशों में जोश से बढाए .जिससे भारतीय शासन की बिगड़ी छवि में निरंतर सुधार के साथ समर्थवान शासन के स्वरुप का उदय होना प्रारम्भ हुआ . जिसने यूरोपियन राष्ट्रों ,एशिअन देशों के साथ निकटवर्ती पडोसी देशों से मधुर व् सहायक सम्बन्ध की दिशा में सफल यात्रा -संपर्क की ऐतिहासिक मिसाल अपनाई .इधर हिंदुस्तान की विचलित हो रही राजनितिक हैसियत बौखलाहट में साँस फुलाए आपा खोते सक्रियता में उलझ पड़ी . जिसका एकमात्र उद्देश्य विरोध दर्ज करके अपने आक्रमण से पराजय ढँक के पुनः स्थापना हेतु मजबूती का सोद्देश्य प्रचारित करवाना ही ही लगता है .विरोध के लिए समय गवाए बगैर ‘नीति बनी तो क्यों’ ,’योजना नहीं बनी तो क्यों ‘,’विधेयक आया तो एक स्वर में जनविरोधी’ कहके भड़काऊ विरोध ,नेतृत्व ‘वैश्विक संपर्क -यात्रा ‘पर तो आरोप लगाते की देश से बाहर यात्राएं !,’पडोसी देश में आपदा में मदद’ हो तो उसमे प्रभाव -सम्बन्ध कम हेतु विरोध ,वयक्तिगत आरोप लगा कर ‘जबाब जबाब के नाम पर उकसाने की’ सस्ती राजनितिक तकनिकी आदि अनेकानेक राजनैतिक भूमिकाए स्पष्ट रूप में नाउम्मीदी हो रही विरोधी राजनीती की सम्भावना बयां कर ही देती है .हास्यजनक महसूस होता है क्योंकि – ‘आजका विरोधी’ जब भी सत्ता से अपदस्थ का दर्द अनुभव करता है तो अपने सत्ता -समय के लाभार्थियों की मदद ले जाल बुनने लगता है .ऐसे ही शैली की शासन उसने चलाई भी .कई तरफ से राजनीतिज्ञ ऐसे जाल में मानो व्हेल पकड़ने की आस में पैंतरेबाजी भी करके अपने दर्द भूलने या संभावित अंधकार से बचने की कोशिश करते जा रहे हैं .जाल के ताने -बाने के ओर -छोर पकड़ने हेतु दूर बैठ कर पत्थर फेकते बिगड़ैल से आरोपी -गणित समझने की जद्दोजहद में लालित्य स्वरूप से अपनों के चश्मे ,घडी एवं सर पर भी पत्थर का वार खाने में महत्व मानने लगें है .आख़िरकार राजनीती की विपक्ष -भूमिका के मोहल्ला शैली से मिलेगा क्या ! फिरभी सब के परिणामस्वरूप चाणक्य के राष्ट्र में घासलेटी राजनीति की नाव बिन पतवार मझधार में है .——–अमित शाश्वत

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