Menu
blogid : 19050 postid : 944944

जितना हूक, उतना भूक नतीजा…

shashwat bol
shashwat bol
  • 86 Posts
  • 77 Comments

भारत में वैसे लोगों को हूक बहुत ही बढ़ती जा रही है जिन्होंने मलाई खाई – खिलाई थी . खाने का अभी चंद वक्त औरों के पास रह गया है . चोरी से सोना चुराओ या सुनार का कचरा तबका उनका तो दुनिया के थियेटर में स्पस्ट है . गाहे बगाहे यह भी हो जाता है की जिनके हाथ बगेरी(चिड़िया )न लगे वो जब हंस के शागिर्द होते है तो अपने वजूद को शायद आसमान ही समझ लिए होते है जबकि धरती का मोल तक नहीं मानते .वक्त को दोष दें या किस्मत को या फिर किसी करतूत को हूक पाने वाले इसके बड़े अभियंत्रणकर्ता हो जारे है .डगमगाते क़दमों को छड़ी थमा के और बुझते चिराग के तेल को बचा लेने के अभियान से अपने धैर्य को परिलक्षित किये होते हैं .रही बात आगे – पीछे से चीखने वालों की तो ये अपनी रोटी को देखते है और दाता ! के लिए धन्यवाद स्वरूप भूकते चलते हैं . जबकि उनके मष्तिष्क के रेशे में भी वजह समझने की क्षमता बाकि नहीं लगती अगर सम्भावना हो तो आगे रोटी के साथ मक्खन के उम्मीद /इक्क्षा / लोभ में हूक बनके भूक और भूक में जबरिया बंदी हुआ जाता है . एक समय ओहदे पर बैठे नम्बरदार गिनती न कर पाते की किसने कितना हड़पा – गडपा . बांए – दाएं डर- डर के देखते फिर गले की आवाज निगल लेते . परन्तु आज पहरेदार चतुर्दिक जागते रहो की बुलंदी से ऐरावत हुआ है तो तामस से भरे गाला फाड़ के भूकते ही जा रहे है . ऐरावत के पुँछ के बाल छू के अपना मुँछ सहलाने में लगे है . ऐसे में नील रंगे पुंछ से पुंछ बंधन कर चारो और मुख करके अपने आप को मगध का प्रतीक स्तम्भ – चिन्ह भी मान लिए हैं . इतना ही नहीं अपने गूंज को चारो दिशाओ में दिखने का अवसर अनुकूल प्रयास भी करते जा रहे है . वहीँ देखते – सुनते और आधुनिक मीडिया युग का मानव ऐसे के परछाई को समझने की चेष्टा करता भी जा रहा है . ——- अमित शाश्वत

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh