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चन्दन चढ़ भुजंग इतराया चन्दन बुझे मुझे क्या ,संग कोई आया . लगे सुरसुरी , चन्दन अहसास मगन – बौराये आधी रात भी लगे बतियाय . बीतन लगे मजे दिन – रात हो गए सुवाषित साँझ औ प्रभात . मगर अन्य जीव राहगीर घबराए कैसे इस विष – चन्दन से बच पाएं . रह बदलें की अन्यत्र जाएँ रोज चर्चा जन सबको भाये . एक दिन राह छोड़ , सबने भय बंदी की नतीजा चन्दन संग विष बुझी ही लगे जिए . चन्दन वास्तविकता समझ शर्माए , मन सांत्वना दे, अत्प्पन से मिलाये . किये अत्प्पन था ,चन्दन के बाजार रोजगार हाट – काट चन्दन मोल लगाये . आखिर लगन लगे नारी में सारी की सारी में नारी चन्दन – विष फर्क न नजर आये . सांपो के प्रजाति इक्क्ठे चन्दन लदाए चन्दन फुसफुस ढहते , फुफकार हर्षाये . चन्दन – विष वैज्ञानिक निकल इस वन आया खोज में चन्दन के दलित स्वरूप को लगा परखने . पर ज्ञान नहीं होता दलित – प्रकृति के व्यवस्था चन्दन के परिक्षण -विज्ञानं बताये आस्था . ———— अमित शाश्वत ———————-
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