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हिंदुस्तान की नीव में अनगिनत इतिहास दबे पड़े है . हजारों साल में भारतीय सभ्यता – संस्कृति ने दुनिया के विभिन्न विचारों को देखा – जाना – समझा . यहाँ विचारों का आदान – प्रदान सहजता से भी संभव हुआ . साथ ही भारत के प्रति आकर्षण या संघर्ष के बल से इसे विजित करने का दुस्साहसिक कार्य भी ऐतिहासिक दस्तावेजों में वर्णित है . इतना ही नहीं प्राचीन भारत ने अपने विचाधारा को विश्व में फैला के स्थापित करके संसार को लाभन्वित का भी प्रयास संभव किया . मगध से उद्भूत बौद्ध विचारों का आज भी पूरा और सफल प्रभाव अनेक समृद्ध व् विकसित देशों में है . ऐसे देश निरंतर हिंदुस्तान से संपर्क के द्वारा इन विचारों के अग्रसर स्वरूप पर संज्ञान रखते ही हैं . अंग्रेजी शासन काल में विद्रूप रूप से भारत में विशेष तौर अपना प्रभाव बनाए रखने के साथ विस्तार तथा समर्थक बढ़ने हेतु फूट डालो राज करो की योजना पर स्वयं की नीव मजबूत करने की चेष्टा होती रही . इन पाश्चात्य विचार ने हिंदुस्तान की आत्मा को समझने में समूर्ण ज्ञान का आभाव प्रदर्शित किया .हालाँकि उन्हें तात्कालिक रूप में अपने सफलता से विश्वास हुआ था की हिंदुस्तान मात्र जयचंद व् मीरजाफर है .यह सही है हिंदुस्तान प्रतिक्रिया तथा विरोध में भी समय लेता रहा है , लेकिन जब सब प्रकार से निश्चित कर लेता है की अब ऐसे शासन अथवा व्यवस्था को उखड फेकना है तो फिर शायद सिकंदर ही नहीं आधुनिक विश्व में भी हिंदुस्तान से टकराने की इक्क्षा नहीं होती . यह भी ठीक है की आज लोकतंत्रीय व्यवस्था में हिंदुस्तान अपना भविष्य निरमान खातिर कोशिश करने लगा है . परन्तु विरोध की क़ानूनी आजादी से हिंदुस्तान में जयचंदों – मिरजाफ़रों को मौका मिल जाता है . नतीजतन अंग्रेजों की विचारदारा स्वयमेव खाद – पानी पा जाता है . आजादी के उपरांत चली आ रही व्यवस्था में हिंदुस्तान खोया सा अपनी डगर डगमगाते – कांपते बढ़ने की कोशिश किया मगर अग्रेजी विचारों ने मष्तिस्क को पंगु बनाए रखने की भरपूर ताकत लगाए राखी . हिंदुस्तानी विचारों की रस्साकस्सी होती रही . जिसने विचारधारा को मथने का कार्य किया . तब हिंदुस्तान अपने सभ्यता और सांस्कृतिक मूल्यों की सम्पूर्णता से पड़ताल किया . जिसने आजादी के बाद अवसर के आभाव को और अपनी मज़बूरी को दरकिनार करने की सम्भावना को पहचाना . नतीजा राष्ट्रिय रूप में हिंदुस्तान को २०१४ के आम चुनाव में विशेष विचारदारा को सहर्ष पूर्ण बहुमत दे कर शासन की बागडोर सौप दी .इसके बाद इस दारोमदार के नेतृत्व ने मात्र १५ माह के अपने शासन काल में अंतराष्ट्रीय स्तर पर विस्तृत रूप से शानदार – सफल – सार्थक ऐतिहासिक कार्य आरम्भ करके सर्वप्रथम धूल धूसरित हिंदुस्तानी प्रतिष्ठा को पुनर्स्थापित किया है . जिससे हिंदुस्तान की अपनी विचारधारा परिपुष्ट ही नहीं हुई बल्कि आधुनिक संभव स्वरूप में अर्थात विभिन्न क्षेत्रों में वैज्ञानिक ज्ञान – संसाधन के आवश्यक सहयोग के साथ भी हो ली है . कितने सहजता से ऐसे विश्वास पूर्वक वैश्विक धरातल पर हिंदुस्तानी विचाधारा अपने पावं ज़माने लगी है , जिसे आम अवाम सोचता भी नहीं था . शासन का मुँह ताकना व्यवहार मन चूका था . आज हिंदुस्तान का नागरिक अच्छी प्रकार समझ गया है की उसके भविष्य के निर्माण के साथ सभ्यता – संस्कृति भी सुरक्षित रह सकती है . वह और ज्यादा नासमझी करने की भूल अब नहीं करना चाहता . जिन आधारों पर हिंदुस्तान को बाँटने की लगातार कोशिश चलती रही है , वास्तव में अब वे आधार खुद ही ध्वस्त होते जा रहे है . हिंदुस्तान की वर्तमान शासन व्यवस्था अपने नागरिकों के हित की रक्षा देश ही नहीं विदेशों में भी निरंतर कर रही है . दुबई में १२५ करोड़ हिन्दुस्तानियों की तरफ से ३४ साल बाद प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने सम्बोधित किया . उनका जिस जोश से इस्तेकबाल किया गया वह विश्व को सन्देश है की हिंदुस्तानी का दिल अपने देश से हमेशा जुड़ा रहता है .उसकी धड़कन देश के भविष्य के लिए लगातार चलने को प्रेरित होती है . इस तरह से आज के हिंदुस्तान में एकता , विवेक , भाईचारा , समानता एवं सहयोग की हिंदुस्तानी विचारधारा बलवान हो गई है . हाँ अंग्रेज परस्त विचारधारा बिलकुल दरकिनार होने की अवस्था में है . राष्ट्रिय रूप से हिंदुस्तानी नेतृत्व निरंतर सरलता से हिंदुस्तानी अखंडता को वास्तविक रूप प्रदान करने में संलंग्न है . हिंदुस्तानी सारे आपसी विभिन्नता भूलके नव निर्माण में भागीदार होने की दिशा में प्रस्तुत है . कतिपय अंग्रेजी मानसिकता वाले देश व् राज्यों में कूद फांद करके घुड़की जाता रहे है ,लेकिन अपनी जर्जर भूमिका को मान कर अंतिम लौ की तरह धुँआ होने की ओर हैं . —— अमित शाश्वत
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