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भारतीय जनमानस को संचेतना से परिपुष्ट करने वाला सर्वाधिक सामाजिक – वैज्ञानिक साहित्यकार निःसंदेह मानस के अमर रचनाकार गोस्वामी तुलसीदास जी को समझा व् माना जा सकता है . आदि ग्रंथकार महर्षि वाल्मीकि ने रामकथा के विषयवस्तु की पौराणिकता और धर्मसंज्ञंन से परिपूर्ण महाकाव्य रामायण का प्रणयन किया था . जिसमें रामचरित को देव भाषा सस्कृत में स्थापित मान्यतावों के सन्दर्भगत विवरण व् आख्यान स्वरूप रचना की गई .आधारगत रूप से लौकिकता से परिपूर्ण तत्वों की दृष्टि से तुलसी दास जी ने सर्वाधिक जनप्रिय महाकाव्य मानस अर्थात श्रीरामचरितमानस की आवश्यक रचना राष्ट्र तथा सार्वभौम मान्यतावों की प्रतिष्ठापना के दूरगामी संरचना व् व्यवहार के दृष्टि से की . तुलसी बाबा के जीवन सन्दर्भ के लिए जनसमुदाय में विभिन्न कथाएँ प्रचलित हैं . तुलसीदास जी का जन्म संवत १५५४ श्रवण शुक्ल सप्तमी के दिन प्रयाग के समीप बाँदा जिले के राजापुर गांव में हुआ था .तुलसीदास के बचपन का नाम रामबोला के रूप में चर्चित रहा है . पिता आत्माराम दुबे और माता हुलसी के लालन – पालन से वंचित तुलसी का जीवन आम बालकों के समान नहीं वरन स्नेह – शरारत के स्थान पर द्वंदात्मक अवस्था के बीच अवश्य पला – बढ़ा,क्योकि माता हुलसी ने तुलसी के असामान्य १२ माह के गर्भ उपरांत जन्म के बाद व् नवजात के ३२ दांत तथा जन्मते “राम” शब्द उच्चारण जैसी लीलाओ से घबड़ा, अनहोनी मान कर अपनी दासी चुनिया के साथ बालक को वहां से हटा दिया .पर माता तो पुत्र को अलग करना न सह सकी और शीघ्र चल बसी . उधर चुनिया दासी ने हर संभव फर्ज निभाया .आख़िरकार वह भी ५ वर्ष के बालक तुलसी को छोड़ दुनिया से विदा हो ली . फिर अनाथ तुलसी की देख रेख एक ब्राह्मणी ने किया .माना जाता है की वह माता जगजननी पार्वती थीं . कलांतर में नरहरि स्वामी ने ‘रामबोला’ का नामकरण किया . बिना सिखाय रामबोला ने गायत्री मन्त्र का उच्चारण किया . अयोध्या , कशी में अध्ययन के पश्चात रामबोला के अनमोल तुलसीदास के रूप में अवतरण की कड़ी में सीधा और स्पष्ट प्रवाह माता – पिता के अभाव और लिए गए विवाह निर्णय से प्रारम्भ हो ही जाता है . रत्नावली नामक रूपवान कन्या से विवाह बंधन में बंध कर तुलसी आम युवा के समान ही प्रेम के सहज धारा में स्वयं डूबने लगे . सामाजिक तौर पर रामबोला की दाम्पत्य दीवानगी की आज भी उदाहरण स्वरूप चर्चा होती ही है . जब अपने पत्नी के मायके तुलसी दास जी अर्ध रात्रि की कालिमा में भी पहुंच गए . हद तो यह चर्चित है की उसवक्त परिश्थिति वश सांप को रस्सी समझ कर उसी के सहारे पत्नी के कक्ष तक जा पहुंचे . आज के युवाओ को दाम्पत्य जीवन में शायद ऐसा हास्यस्पद प्रतीत हो लेकिन प्रेम की परकाष्ठा इस प्रकरण को जनआस्था में गहराई से जुड़ जाना बता ही देता है . सबसे उत्कृष्ट प्रेम से आगे जा कर कर्तव्य – दायित्व बोध का कार्य रत्नावली के उलाहने से जाहिर हुआ . रत्नवाली ने तुलसी दास की अंधप्रेम को संकट जैसा समझ कर अहसास कराया – “जितना प्रेम मुझ हाड मांस के शरीर से लगाये हो , प्रभु राम से लगाओ तो कल्याण हो जाए” . रामबोला की भावना को जबरदस्त झटका लगा.मूलतः तुलसीदास का अवतरण विशेष कर प्रभु कार्य के लिए ही था .जिसमे ठोस संरचना निर्माण हेतु इश्वरिये विडंबना व्यवहारिकता के परिमार्जन हेतु सोद्देश्य उत्पन्न प्रतीत है . . जिसके बाद उनका मन वास्तव में राम के लिए पूर्णतया समर्पित हो गया . इसपर अनेक तरह से विवाद किया जाता है ,संभव भी है . परन्तु भारतीय धर्माचरण व् व्यवस्था के सौभाग्य स्वरूप ही यह घटित हुआ . तदुपरांत तुलसीदास जी ने स्वयं को प्रभु चरणों में न्योछावर कर दिया . भगवान से निरंतर निकटता की प्रक्रिया में संलग्न हो पड़े . महान भक्त कवि के रूप में तुलसी बाबा का अवतरण संभव हुआ .जिनके द्वारा धर्म , समाज , अर्थ ,राजनीति और शिक्षा – विज्ञानं के लिए उर्वरा भूमि निर्माण के हेतुक लेखनी का सर्वश्रेष्ठ उपयोग माना जा सकता है . उन्होंने प्रभु श्री राम के लौकिक जगत के परिप्रेक्ष में मर्यादा पुरूषोत्तम स्वरूप की व्यवहारिक सामाजिक छवि निरूपित की . जिसका सम्पूर्ण प्रादुर्भाव श्रीरामचरित मानस में तुलसीदास की अलौकिक लेखन योग्यता से संभव हो पाया . जिसने भारतीय समाज को दूरगामी नीति संपन्न किया .इसका तार्किक व् व्यवहारिक पक्ष जनमानस के समीपस्थ होने से अत्यंत गहराई तक व्याप्त हो सका है . वैसे भारतीय आज इस ग्रन्थ के पुस्तकाकार रूप से थोड़ा हट कर भी अन्य माध्यमों से प्रसारित कथा तथा प्रसंगों को विवेक जनित मानता ही है .मतलब अन्य रूप में ही सही मानस के राम से वह जुड़ा ही है . रामकथा को जनमानस में बसा देने का युगीन सफल कार्य तुलसी बाबा की असाधारण प्रतिभा के साथ दैविक कृपा को भी माना जाता है . अन्य तुलसी साहित्य में विनय पत्रिका , कवितावली , दोहावली ,हनुमनबाहुक , वैराग्य -संदीपनी , बरवै रामायण ,रामाज्ञा-प्रश्न आदि है . तुलसी कृत हनुमान्चलीसा तो जन जन के होठ पर पाया जाता है . रामभक्त हनुमान के चरित्र ने तो हिंदुस्तान के बाल, युवा व् बुजुर्गों पर सभी भेद भाव मिटा कर प्रभाव बनाया . वस्तुतः तुलसी बाबा ने रामचरित रच कर जनसमुदाय को राम तत्व के सर्वाधिक निकट ले चलने का दुष्कर कार्य सफलता से किया . जिसने अपना भरपूर प्रभाव बनाया . विभिन्न षड्यंत्रों के देशी विदेशी आघातों के वावजूद श्री रामचरित मानस और श्री राम भारत की पहचान हैं .जिसका प्रत्येक हिन्दू ही नहीं अन्य धर्मों को मानने वाले भी आदर व् सम्मान करते है .यह तुलसी बाबा की सफलता ही है .——– अमित शाश्वत
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