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व्यक्तिवाद,अवसरवाद के कंधे स्वाभिमान:जनता के माथे अपमान

shashwat bol
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विगत बिहार की सभा में प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने व्यवहार के सवाल पर जनता से प्रश्न सा किया जो वैज्ञानिक मुद्दा से बड़ा ही आधुनिक सा डी एन ए का था . वैसे इसी सव्वाल के केंद्र बिंदु ने मोदी या बी जे पी को ‘जुमला पार्टी’ कहा मगर इस आसंका वाले सव्वाल ने उन्हें इतना उद्वेलित कर दिया की जुमला कह कर भी डी एन ए को धरदबोचा . बात यहां तक जा पहुंची की स्वयं की बात को बिहार से जोड़ने की हर संभव चेस्टा की गई . नतीजा दल -जति विशेष से जुड़े लोग मीडिया में कुछ बाल – नाख़ून काटके भेजते दिखाए गए . .वास्तविकता में कई जगह इसके लिए पोस्टर लगा के आम जन को आमंत्रण जैसा किया गया . हस्य्स्पद रूप से पटना , आरा आदि के विभिन्न स्थानो पर ऐसे बैनर के नीचे एक भी आमोअवाम नहीं देखा गया . जबकि बैठने वाले मजबूर खुद को सर्मिन्दा जैसा ही प्रस्तुत किये . तो बात नहीं बनते देख और मोदी जी के दमदार रैलिओं को जवाब देने के उद्देश्य से भी महासहयोग में एक दूसरे के काँधे अपनी जति , तथाकथित स्वाभिमान व् सम्प्रदाय की बन्दुक का प्रयोग करने के लिए जनता का आवाहन किया गया . जनता तो जनता है ,आखिर है तो आम ही . सो जुटने की सुविधा के सहारे स्वाभिमान रैली में पहुंच भी गए . संख्या बुझ भाप व् अवसर देख कर राष्ट्रिय बेदखल पार्टी ने भी शिरकत कर डाली . मंच पर मौजूद नेतावों को देख कर इतना स्पष्ट लगा की ये तो स्वाभिमान का जमावड़ा हरगिज नहीं है बल्कि आपस में ‘अवसर देख’कर मिलना , मौके पर चौका की चाह ही है . मुख्य दल के किसी में भी परिवार और एक दल की अध्यक्ष को छोड़ महिलाओं को सम्मानजनक मंच नहीं मिला . ताजा अखबार में महिलाओं के लिए समर्पित दल जे डी यू में महिला नेतृ दरकिनार थीं . यहाँ तक की जिन दल के लिए शोषित , दलित महिलाये भारी संख्या में जुटतीं थी वे भी ना जैसी थी .महिलायें नदारद होने से उपस्थिति मतदाताओं की नहीं ही बनती बताती . उधर बिहार में तबादलों से लगता है सरकार को भ्रम ज्यादा ही हो गया है की जनता नहीं अधिकारी चुनाव जीताते है . जो अधिकारी बड़ी तयारी कर प्रतियोगिता में सफल हो पद पाते है उनको पार्टी का कार्यकर्ता जैसा समझना वाकई भ्रम ही है . बबूल के निचे आम मिल जाने से पेड़ आम का मान लेना हास्यास्पद है साथ ही भ्रम की ब्यानात्मकता भी है . तो स्वाभिमान रैली उपस्थिति देखने से सफल बताई जा रही है वही रैली में महिलाओं , जागरूक युवाओ की सर्वथा अभाव दिखी जो अंदरुनी असफलता की गहराई जताती है . उधर डी एन ए के खिलाफ नारे में उपस्थित जनता द्वारा अधिकांसतः समर्थन नहीं व्यक्त किया गया .जबकि एक दल के नेता को विशेष समर्थक भीड़ ने उनके आह्वान पर भी अपना मौखिक नारा व् तालिया तक सिर्फ उनके लिए प्रयोग किया . अन्य के लिए या उनके मुद्दे को सभा में आ कर भी बे सहारा ही किया . जो आगे की कुआ और खाई वाली स्थिति को जाहिर कर देती है .इधर आरा में मोदी जी के बिहार को सवा लाख करोड़ पैकेज की घोषणा पर अख़बारों में लेखा विज्ञापन से बिहार सरकार क काट प्रकाशित करके अपनी भूमि को सिमित जाता देना अत्यंत राजनैतिक अपरिपक्वता की घटाव प्रणाली दर्शाता ही है . जनता के माथे अपना अपमान देने की सम्पूर्ण कोशिश होना तथा जाति को इसी आधार पर समर्थन का आह्वान ,भेद भाव हेतु गोलबंद करने की चेष्टा में रैली ने जरूर मौक़ा दिया . महिलाओं की इनके प्रति उपेक्षा भी ज्ञात हुआ . दलित – शोषित का स्वयं अलग थलग होना भी प्रकट हो ही गया .साथ बचते वही दीखते जिन्हे इन से लाभ है या अन्य ऑप्शन नहीं है . ======== अमित शाश्वत

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