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हिंदी मानो सठियाई सास अंग्रेजी जैसे बहु खास

shashwat bol
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नई नवेली दुल्हन ने घर में प्रवेश लिया . सासु माँ अपनी ख़ुशी की अधिकता में बहु को स्टेन्शिला के जगह पर शीला कहके आशीर्वाद दिया और किचन दिखने ले चली . बहु ने बर्दास्त न करके आखिर फट के कहा – मम्मी , मैं शीला नहीं एक्चुअली स्टेन्शिला हूँ . मुझे किचन क्यों दिखती हो . ये सब मैं नहीं करती और करुँगी भी नहीं . सासु भौचक बहु को देखती रह गई . ऐसा ही हाल हिंदी भाषा की अंग्रेजी के दृष्टि में है . हिंदी को राष्ट्र भाषा का दर्जा अवशय मिल चुका है . परन्तु वास्तविक रूप से हिंदी अभी व्यवहारिक धरातल पर पिछड़ी संस्कृति की पहचान भर ही बनी हुई है . इसका सीधा व् दीर्घ कारन कामकाज में इसे व्यवहारिक स्वरूप में तरजीह न देना है . जिसके लिए हिंदी के क्लिष्ट अनुवादजन्य व्यवहार की भूमिका सर्वथा bhi कारक है . अंग्रेजीदां कर्ता- धर्ता ने हिंदी को जटिलता के भवर में फ़ांस के इतना बोझिल कर दिया है की हिंदी की समृद्धि के जाल में इसकी व्यवहारिक सफलता संदिग्ध बनी रहे . —- amit shashwat

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