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हिंदुस्तानी आजादी पाएं , फिर बिहार को भी हुआ खुमार, हिस्से आया गरीबी पिछड़ापन आज भी खोजे खेवनहार . कृष्णा की माया हो केदार की छाया कर्पूर कीमहक या अब्दुल भाया , जगत नाथ के बिन्दुस्वरूपा काया , सत निकलो इंद्र बनो बिहारी आला . नर विरल से सघन बण्यो जंगल में स्वंय सन्नाटा भयो . गरल पान चलने लगो , कथा कौन कह्यो , मौन खटक्यो . आये गए ताजा चुनाव – चर्चा ता – ता थैया होवै , ले दे खर्चा . जनता अनठियाय , बाजे ने , धरे कोप नेतासँ झालमंजिरा ले सुमिरे करे होप . बुझ रहल पब्लिक, अवसर के अभिनन्दन बा बाप दादा निभे , मन में इहे वंदन बा . —– अमित शाश्वत
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