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राजनीती की लीलाए भी अजब – गजब से आगे इक्षाधारी रूप लेने की पुरजोर चेष्टारत है . कभी इन्ही बोल – बयानों में इंडिया को एक व्यक्ति में सिमित किया जा चूका जा चूका है . जिसमे आपातकाल की पृष्ठभूमि साफ़ झलक जाती है . फिर पायलट प्रधानमँत्री को लाल मिर्च हरी मिर्च की अज्ञानता के लिए झपट लिया गया . यही नहीं इससे आज भी उदाहरण पेश होता है . राजा मांडा ने माने तो विद्रोह के नाम भ्रष्टाचार – बोफोर्स मुद्दे को देश – विदेश में खूब भुनाया और फिर सत्ता भी पा ली . लगे – लगे आजीवन सत्ता समीकरण बनाये रखने के फ़िराक में आरक्षण मुद्दे को हवा दे डाली . मंडल के नाम पर देश में लहर उठाने की चाल चली . इससे मुद्दे और संभावित परेशानी को जोश का होश भूलने के लिए प्रयोग उसी दरम्यान किया गया . नतीजा आरक्षण तो रहनी ही थी रही भी .किन्तु जिनने आरक्षण को अपनी चारागाह बूझ लिया था उनका अता पता नहीं रहा . बिहार में समाजिक न्याय के मसीहा की नाक के नीचे चारा घोटाला चलता रहा. सुगंध् में मशगूल रहे . सामाजिक न्याय के जगह कतिपय दबंगई ही पनपती गई . गरीब – गुरबे के बोलों की बेधडकता मात्र ब्यान रह गए . समझते समझते तीन टर्म बिहार “माय” या “भूरा बाल” के बयानों में झूलता रहा . फिर भाजपा समर्थित सुशासन की नीव पडी . लॉ एंड आर्डर में सुधार लगा . गठबंधन में कई धाराओं को ना समझने अथवा पलायन या साठ- गाँठ की असुविधा ने अराजकता पर शायद लगाम स्वतः पा सुशासन निखरा . लेकिन आपसी सहयोग में उम्मीद की कमी या खुद को समर्थवान बूझ जाने के संज्ञान ने भी गठबंधन तोड़ दिया ही . इन्ही बीच भारतीय “सैनिक की नौकरी को मरने हेतु ” से जोड़ कर ब्यान आये . जब केंद्र में २०१४ का चुनाव होने लगा तो ” चाय बचने वाला ” नीच ” जैसे घटिया बोल बोले गए . लेकिन जनता ने जनार्दनी विवेक का परिचय दिया . फिर घटियापाने को ही जबरदस्त जवाब दे दिया . बिहार में सुशासन का दम भरने वाले को ना कुछ सुझा तो किनारा कर पतवार दूजे थमा दी . पद तो पद है गिफ्ट में मिले या रिमोट हेतु , अक्ल तो सीखा देती है . शहर सिखाये कोतवाल – के स्वरूप का अभ्युदय हुआ . फिर बिहार चुनाव समीप मान -, देख लगा की बागडोर का पावर जरूरी व् फायदेमंद होगा , सो पुनः लगाम थाम ली गई . अब जब थाली खीचने आदि से डी एन ए का सवाल / ब्यान हुआ तो इसे तमाम बिहारी से जोड़ने के लिए नमक मिर्च से झनक उत्पन्न की कोशिश जारी हुई . इसके पूर्व चन्दन – भुजंग का दोहा दोहराया गया . जहर पीने की बेधडक बयान आये . और कौन जहर प रहा कौन पीला रहा की उक्ति भी आई . अभी – अभी तो आरक्षण – समीक्षा के सुझाव वाले ब्यान को नमक – मिर्च की कौन कहे पूरा इमली मिला के चटखारा बनाया जाने लगा है . इसी को मुद्दा बनाने की चाल से बिहार चुनाव में ढाल जुटाया जाने की चेष्टा जारी है . इसके पूर्व इन्ही लोगों ने आरक्षण में अन्य गरीब अगड़ों को जोड़ने की समीक्षात्मक जैसी ही बात चुनाव देख मानी. फिर गुजरात में आरक्षण की मांग करने वालों को सहर्ष हार्दिक समर्थन तत्परता से घोषित किया . क्या आरक्षण में अन्य को जोड़ना समीक्षा नहीं तो और क्या है . क्या आरक्षण की समीक्षा के मायने आरक्षण हटा देने की मंशा है ! आश्चर्य है की अपनी दाग अच्छे औरों के कलम की स्याही महाकातिलाना – ख़तरनाक. जनता ने ऐसे लाख – लाख बाजीगरी के वावजूद जिनको नकार दिया, उनकी बैतलीपन उभर ही जा रही . जनता लोकतंत्र में जनार्दन तो है ही मगर विवश विक्रमादित्य नहीं जो बेताल को ढ़ोती रहे और दकियानूसी विचार में प्रात व् देश की साख दावं पर लगा दे . हिन्दुस्तान आज विश्व का सिरमौर माने जाने की विश्वश्नीयता से कदम बढ़ने लगा है . कृपया हिन्दुस्तान के विचार बिहार को भुलवाये नहीं . अन्यथा बिहार की आगे की पीढ़ी , वर्तमान पीढ़ी और भविष्य की पीढ़िया कदापि क्षमा नहीं करेगी . ——– अमित शाश्वत
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