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सुबह – सबेरे मिल – बैठे कई नौजवान , करना नहीं चाहते कोई काम , बन निकली हुड़दगों की टोली है, भैया ये कैसी होली है. ना नजरों में प्यारा भाव न उमंग के ताव , दिखने लगा मानो समाज का घाव , हरकतें जैसे किसी ने बंद शैतान की पेटी खोली है , भैया ये कैसी होली है . बूढ़े रामलाल का गुमं हो गया चाव , फटी झोली तो मजाज हुए पछ्ताव , नौजवानों की बुद्धि पर हावी नशे की गोली है , भैया ये कैसी होली है. न प्यार दीखता ना है प्रेमी भाव के खुमार , ना हैं चेहरे पर मुस्कान औो न हंसी- ठिठोली , हो हल्ला औो होंठों पर चोली – चोली है , भैया ये कैसी होली है. चले चलों छोड़ के धाम के आराम , छोटू समझने लगा है टोली के गान , गुम्बद पर कबूतरी बोली है , भैया ये कैसी होली है . कान्हा की धरती चीख रही , नहीं मन की प्रीत रही , है जो कुछ थोड़ा वो भी रंग – रंगीली है , भैया ये कैसी होली है . अपनी मस्ती में डूबे ,संगी साथी छूटे तो छूटे , किसी को नही फ़िक्र , पड़ोसी है टूटे – टूटे , पूछता भी नहीं कोई आखें क्यों गीली हैं , भैया ये कैसी होली है . होली का हो गया बहाना , खो गया शर्माने का ज़माना , मौके ने रिश्ते – रिश्ते को तोली है , भैया ये कैसी होली है . भोग विलास में डूब रहा मानव , लगने लगा की ऐसा ही होगा दानव , झड़प में चल गई गोली है , भैया ये कैसी होली है , भैया ये कैसी होली है . ————————————————– अमित शाश्वत
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