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खोटे रिश्तों का कुटिल बोझ (लघुकथा )

shashwat bol
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भुवन बाबू की बिटिया सयानी थी . विवाह हेतु पत्नी रोज कमान काटती . पर उन्हें ज्यादा फ़िक्र तो अपने आराम की थी . नतीजा कभी गए भी तो बेसिर पैर की बतिया – कह आते . टोकरी की झलक जैसे अपने फलों का अंदाज बिखेरती है , उसी प्रकार लड़के वाले अंदाज करते . और भुवन बाबू की तो अल्लाह खैर करे . यहाँ तक की ऑफिस में पत्नी जाके दस्तखत कर सकती तो उनके खातिर और ही सहूलियत होती . लेकिन … सब अपने अनुसार तो संभव नहीं न . तंग आकर पत्नी ने एक रोज आसमान सिर पर उठा लिया और लगी लगातार कोसने . भुवन पत्नी की भयंकरता से घबराये . आनन -फानन में बैठकी करने में लग गए . हल सुझाया – क्यों नहीं बिंदा बाबू के बेटा चुन्नू को ही दामाद बनाया जाये . दोनों आपस में कितने घुले -मिले हैं . बेटी घर की घर में ही रह जाएगी . पता नहीं किसी दूसरे घर में इसे इतनी आजादी ही न मिले . शादी के खर्चे खातिर भी ज्यादा माथापच्ची नहीं करना पड़ेगा . ऐसे तर्कों द्वारा भुवन पत्नी को आसान राह अपनाने खातिर उत्साहित करने लगा . पत्नी कुछ देर चुप हो के पति भुवन को देखती रही , मानो भुवन से इतनी आशा थी ही नहीं . मतलब भुवन की सोंच पत्नी की उम्मीद से आगे बढी निकली . फिर पत्नी ने दिल को झटका और अवसर समझ अपनी मंशा को गम्भीरता दिखते शुरुआत की . भुवन को पहले एहसास कराते कहा – तुम से तो बेटी व्याहना और आसमान से तारे ढूंढना , एक जैसा ही है . मेरे भी मन में एक योजना है . उतना आसान नहीं लगता , बाकी मैं हूँ न ! सब सम्भाल लुंगी , भुवन अपना बोझ पत्नी को उठाते मान कर बहुत ही उत्साहित हो पड़े . पत्नी ने हवाई अंदाज में उड़ान पट्टी पर सरकते हुए सा कहा – आपके बड़े साहिब गोबिंद बाबू का लड़का अजित है न , वह तो अपनी आशा के साथ जब बात चित भी करता है दीवानगी में डूबा रहता है . एक बार आपके वेतन रुकने पर जब आप हमें भी उनके घर ले गए थे तो दोनों ने घंटों कमरे में गप्पें कि थी . फिर तो बेटी कई दिन बड़ी अकड़ में रही थी . और हाँ , गोविन्द बाबू की घरवाली तो कामवाली जैसी है ,उसको वैलु नहीं देते .उसका होना न होना – कोई फर्क नहीं .अर्थात राज तो है मगर राजरानी नहीं . इतना कहते – कहते उसके आँखों में चमक उभर गई और बल्लियों उछलते दिल ने रनवे से उठते जहाज की भूमिका बना दी .संभल के उसने फिर से कहना प्रारम्भ किया – अरे ,आशा तो वैसे घर में स्वतंत्र ही नहीं रहेगी बल्कि हुकूमत चलाएगी , हुकूमत …., कमान काटेगी – ना सिर्फ अजित का बल्कि गोबिंदा – गोपाला दोनों का . इस कहकहे पर दोनों संयुक्त ठहाका दबा कर आह्लादित होने लगे . बगल वाले कमरे में किताब से नजर भिड़ाए आशा तिरछे होठों से मुस्कराती बुदबुदाई – बेचारा अजित अकेला ! ——– ———अमित शाश्वत

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