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विकास जोड़ें जाए हैं “माँल संस्कृति ” पश्चिम से पूरब की हद्द भई प्रवृति , या की उत्तर से आता है अंतिम .झंकृति . (१) जरूरतें हजार , आवाम हजारों उत्पाद हजार ,बाजार हजारों , मानो जिंदगी रह गई बाजारों – बाजारों . (२) ऐसी नीति जो दे दे झट राज चाहे सौदे में खुजाए खाज , गोया राजनीति को रही न लाज . (३) हुआ – हुआ की नियति हुआ आदमी कावं-कावं से चाहे पाना , पद चासनी , भरमाये नर – नारायण को बता रंगीनी . (४) विवेक को बेकारी कर कहे अनिश्चय सौदे की नंगी हुई शैली को माने कथा – विजय , लगे है हमाम में निश्चय उतरें , कीचड़ लिपटे शिवाय . (५) -ईद मुबारक … , ———- अमित शाश्वत
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