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जो हमारे दिल में बसता है,
जो ख्यालों में खिलता रहता है,
हमारे ही आसपास मिलता-जुलता है,
दुनिया में नहीं दूसरा हिंदुस्तान दिखता है.
हमारी मासूमियत जिन्हें लगती कमजोरी थी,
गलबहियां खोजते हमसे अब भरपूरि,
हमने नियति गले लगाने की अपनाई है ही,
पर आज हिन्दुस्तान की रगो में इल्म रोशनाई है,
सबने अपने गिरेबान में अपनी ख़ता छुपाई है,
दुनिया ने ना अब तक दूसरा हिंदुस्तान बनाई है.
हमने गवां लिए अपनी ऊर्जा रखवाली में,
तुमने वक्त जाया कराया हिलहवाली में,
ठोकर को ठोकर की प्रथा हमने अपना ली है,
भय, आतंक या निराशा के खूब धक्के खा ली हैं,
हम ही संसार की बची उम्मीद ठहरते,
तुमने अब ये कर्ज पहचान ली है,
दुनिया ने ना अब तक दूसरा हिंदुस्तान रच ली है.
हमारे ही घर में आके तुमने सीखी दुनियादारी,
हमारे देखि तुमने प्यार-मुहब्बत और यारों की यारी,
सोहबत पाके भले आगे एड़ी उठाते,
हम तो कण-कण से रग-रग में निर्विकार को बसाते,
नहीं है हिन्द सी इंसानी गरिमा औ मानवता,
दुनिया में नहीं दूसरा हिंदुस्तान अब दिखता.
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